एक ख्वाइस... ~ कृष्णा सिंह बेरा




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एक ख्वाइस...

कृष्णा सिंह बेरा

       

एक अजीब सी अहसास है-

समुन्दर के लहरों में बेचैनी सी राहत.

एक उलझन मे ये बकत का सफर

टूट रही हैँ सपने-

टूट रही हैँ निसानी

ये पल बस एक तस्वीर जैसे.

सायद फिर ना आये मौसम बाहर का,

फिर कभी ना जुड़े रास्ते दो मन का,

एहसास सिर्फ दिल की गुमसुम हो यादों में-

फिर कभी ना मिले खुशी एक सुकून का.


शाम की छाया लिखें क़यामत की नाम,

कहरो में डूबा जाये जैसे जिंदगी.

आईना वी झूठा लगे दिल की जुबान पे

खामोशी की सबर वी हैँ बेबफा जैसी. 

आसमान की रंग आज हुआ हैँ बेदर्दी

हर रिस्ता टूटने लगे जरुरत के बहाने

इमारोतो के शान आज झुके हुए जैसे,

सायद बेदर्दी उनपे वी छायी.

लफ्ज़ सिर्फ महसूस रहे अपनी जुबान पै

ढलती हुयी रातो में छिपा कोई ख्वाइस-

ये पल गुजर जाये कुदरत की बाहो में,

आयो थामले हम वक्त को इन आँखों में.

फिर कभी ना मिले मौका तकदीर का 

इंतजार की लहर में खो ना जाये सफर.

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