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"इये जीना भी केया जीना"
पिंटू बेताल
पल पल जीने कि खोयाहिस से- फिरभी जी लेते कोई जिंदा लाश…!
लेकिन, कमबक्त पत्थर कि ढेर से बिछड़ जाति- जीने कि एहसास;
हो सके मौत इससे भी बेहेतर….
नाकाम कोशिश के बाद भी- जी लेते, कोई जिंदा लाश आगर!
हर पल दे जाति दस्तक- हर वो लमहे, यादो को...
दे जाति दस्तक- हर वो कसमें, बेबाफाई की...
दे जाति दस्तक, हर आहाट- फेका हुया पत्थर कि तरा!
नजर आने लगेगी जरूर…,
बास, दिल थमके बैठो जरा।
मरना तो है आसान-
उससे भी आसान- मारना किसीको,
टूटे दिल के गहराई में झांके देखो-
मिलेगा जो, केहेते जिंदा लाश उसीको;
हर कोशिश कभी- नाकामी नही होता
लेकिन कमबक्त हर नाकामी मिलती है कोसिसो के ही बाद,
केया कोई बतासके फुरसत से...
कोन सी दवाई, जिंदे को भी- बना देता लाश??
बोहुत सा आरमानो को जैसे मिलती है गुमनाम मौत-
एयसेही, हर आरमान जिंदगी को- पूरी ना हो, तो भी चलेगा;
लेकिन इये घुटघुट के जीने से भी आच्छा, हासिन मौत से मिलना।।
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